चंडीगढ़ : आज 1 फरवरी को वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिये पेश किये जाने वाले अंतरिम केंद्रीय बजट के मद्देनजर तंबाकू मुक्त युवा अभियान के तहत नाडा इंडिया फाऊंडेशन एवम देश भर के अर्थशास्त्रियों, बुद्धिजीवियों व युवा वर्ग सहित तंबाकू निषेध की दिशा में प्रयासरत संगठनों ने तंबाकू उत्पादों पर ‘नया हैल्थ टैक्स’ लगाने का प्रस्ताव रखा है। विगत एक दशक से नाडा इंडिया तंबाकू मुक्ति के लिए प्रयासरत है। तंबाकू एवम उससे जुड़े उत्पादों के खिलाफ जनसमर्थन जुटा रहा है। नाडा इंडिया की पुरजोर मांग है कि तंबाकू पर हेल्थ टैक्स लगाकर बाजार में बिकने वाले तम्बाकू उत्पादों पर अंकुश लगाया जा सके।
नाडा इंडिया के संस्थापक व कर्मवीर पुरस्कार विजेता सुनील वात्स्यायन के अनुसार कोविड काल के बाद देश की आर्थिक दशा में सुधार लाने की दिशा में केन्द्र एवम राज्य सरकारों का अहम योगदान है। नाडा यंग इंडिया के माध्यम से हम तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ाने की मांग करते हैं। इससे राजस्व में ईजाफा होने के साथ साथ विशेषकर देश के युवाओं को तंबाकू से दूर रखने का सपना साकार होगा। सेहतमंद राष्ट्र की नींव रखने में यह महत्वपूर्ण है। इस दिशा में विगत वर्ष हिमाचल प्रदेश सरकार ने तंबाकू उत्पादों में टेक्स बढ़ाकर देश के अन्य राज्यों के लिये एक बेहतरीन उदाहरण पेश किया था।
सुनील वात्स्यायन ने बताया कि नाडा इंडिया द्वारा पेश किये सुझावों पर संज्ञान लेते हुये वित्त मंत्रालय द्वारा किये गये पत्राचार में बताया गया था कि संबंधित विभाग से विचार विमर्श कर इस दिशा में सार्थक कदम उठाये जायेंगें।
बजट से पूर्व संबंधित कार्यक्षेत्र में प्रयासरत संगठनों की उम्मीदें एक बार फिर से जागी है। तंबाकू उत्पादों पर नए हैल्थ टेक्स की जोरदार मांग कर रहे हैं। सुनील वात्स्यायन का मत है कि तंबाकू से संबंधित बीमारियों का बोझ और इसमें आ रही आर्थिक लागत चिंताजनक है, इसलिये तंबाकू की खपत पर अंकुश लगाना जरुरी हो गया है।
रिपोर्ट में जारी चौंकाने वाले आंकड़ों से अवगत करवाते हुये उन्होने बताया कि देश में 27 करोड़ से भी अधिक लोग तंबाकू से ग्रसित हैं। जबकि बीस करोड़ लोग धूम्रपान रहित तंबाकू का सेवन करते है। गहन चिंतन का विषय है कि ध्रुमपान करने वालो में बड़ा वर्ग 15 साल ये इससे अधिक के किशोर वर्ग है।
तंबाकू की वजह से हर साल लाखों भारतीयों की मौत हो जाती है। सभी तंबाकू से उत्पादों से होने वाली वार्षिक आर्थिक लागत वर्ष 2017 में लगभग 1773.4 अरब रुपये आंकी गई थी जो कि भारत की जीडीपी का 1.04 है। आंकड़े और भी हैरान तब करते हैं जब पाया गया कि तंबाकू उत्पादों से उत्पाद शुल्क के रुप में प्राप्त होने राशि की तुलना में खपत का आंकड़ा बहुत है। तंबाकू के उपयोग से प्रेरित बीमारियों पर खर्च के माध्यम से हर साल लाखों भारतीय गरीबी की राह धकेल दिए जाते है। उन्होंनें जानकारी दी कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा तंबाकू उप्तादों के लिये रिटेल प्राईस (खुदरा मूल्य) के लिये कम से कम 75 फीसदी की सिफारिश है। जोकि में देश तंबाकू उत्पादों पर लागू नहीं हुआ है । देश में सिगरेट पर लगभग 52, बीड़ी पर 22 और धुंआरत तंबाकू पर 64 फीसदी टेक्स है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मापदंड भी इस बात की पैरवी करती है कि तंबाकू उत्पादों पर कम से कम दस फीसदी का टैक्स ईजाफा भी तम्बाकू की खपत में सीधे कटौती लाएगा m
सुनील वात्स्यायन ने बताया कि दुनिया भर के 40 से अधिक देशों ने अपने रिटेल प्राईस के 75 फीसदी से अधिक पर तंबाकू टेक्स लगाया जिसमें श्री लंका और थाईलैंड देश शामिल हैं। 5 सितंबर 2022 को जारी पार्यलिमेंट स्टेंडिंग कमेटी की जारी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है भारत में तंबाकू उत्पादों की कीमतें सबसे कम है और तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ाने की जरुरत है। छह वर्ष से अधिक समय हुए जीएसटी के तहत इनमें से किसी भी तंबाकू टेक्स में बदलाव नही हुआ है।
देश को आज तंबाकू नियत्रण नीति की जरूरत है। मजबूत तंबाकू नियत्रण नीति के माध्यम से लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती । साथ ही आर्थिक प्रगति का सपना साकार किया जा सकता है।