शिमला।
हिमाचल प्रदेश में जब से कांग्रेस पार्टी की सरकार सुखविन्द्र सिंह सुक्खू के नेतृत्व में बनी है लगातार प्रदेश के खजाने पर फिजूल का बोझ डाल रही है। ऐसे में जहां प्रदेश का धन बर्बाद हो रहा है वहीं विकास बाधित हो रहा है। तीन आजाद विधायकों ने अपने पद से 22 मार्च को इस्तीफा दिया और विधानसभा अध्यक्ष से आग्रह किया कि वे इस्तीफे को मंजूर करें। 22 मार्च से लेकर 3 जून तक यह त्याग पत्र मंजूर नहीं किए गए। 1 जून को लोकसभा व विधानसभा के उपचुनाव सम्पन्न होने के बाद 3 जून को तीनों विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लिए गए। यदि ये इस्तीफे 30 अप्रैल से पूर्व स्वीकार कर लिए जाते तो यह तीनों उपचुनाव लोकसभा चुनाव के साथ सम्पन्न हो जाते, लेकिन कांग्रेस की सुखविन्द्र सरकार ने केवल अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए इन त्यागपत्रों को लटकाकर रखा। यह कहना है भाजपा के मुख्य प्रवक्ता और सुंदरनगर से विधायक राकेश जम्वाल का।
विधायक राकेश जम्वाल ने कहा कि अब विचारणीय प्रश्न यह है कि यह तीन इस्तीफे स्वीकार हो गए हैं और 6 माह के भीतर-भीतर यह 3 उपचुनाव होंगे। प्रत्येक चुनाव में कम से कम 10-12 करोड़ रुपए सरकारी खर्चा आएगा अर्थात 35-36 करोड़ रुपए का बोझ हिमाचल के खजाने पर पड़ेगा। भाजपा ने सीधा-सीधा आरोप लगाया कि यह 35 करोड़ रुपए जो खर्च होगा इसकी पूरी जिम्मेवारी मुख्यमंत्री सुखविन्द्र सिंह सुक्खू के ऊपर आती है।
विधायक जम्वाल ने कहा कि मुख्यमंत्री सुक्खू ने अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए यह खेल खेला है। प्रदेश के खजाने पर अनचाहा बोझ डालने के लिए मुख्यमंत्री की निंदा की जाती है। इससे पहले भी अपने मित्रों को लाभ देने के लिए अनेक-अनेक कैबिनेट के दर्जे बांटे गए, गैर कानूनी तौर पर 6-6 मुख्य संसदीय सचिव लगाए गए जिसका प्रदेश सरकार का करोडों-करोड़ रुपए का व्यय हो रहा है।