धर्मशाला। सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता दिलीप कुमार दुबे ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के भावी विमर्श को तथ्यपूर्ण बनाने के लिए शिक्षण संस्थानों को शोध कार्य पर बल देना होगा। जम्मू-कश्मीर विषय पर सूचनाओं के माध्यम से दुनिया की व्यापक स्वीकार्यता और अभिमत बनाने के लिए शोध कार्य और उसके प्रकाशन पर कार्य करना होगा। इस दिशा में संगोष्ठियों के आयोजन और शोध-पत्रों के प्रकाशन के माध्यम से अपने विमर्श को मजबूत करना होगा।
वे हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला में कश्मीर अध्ययन केंद्र की ओर से ‘संवैधानिक अधिमिलन सप्ताह” के तहत आयोजित कार्यशाला के समापन सत्र में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान द्वारा पीओजेके में संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से पूरी डेमोग्राफी तेजी के साथ
बदल रही है। वहां के लोगों के मानवाधिकारों का खुलकर उल्लंघन हो रहा है। विश्वविद्यालयों के विद्वानों और शोधार्थियों को शोध करके पीओजेके के लोगों की दयनीय स्थिति की तस्वीर को दुनिया के सामने लाना होगा।
वहीं अध्यक्षीय संबोधन में अधिष्ठाता अकादमिक प्रो. प्रदीप कुमार ने कहा कि एक प्रेरित एजेंडे के तहत की जाने वाली राजनीतिक टिप्पणियों से जम्मू-कश्मीर लंबे समय तक एक गलत विमर्श का शिकार बना रहा है। मगर सार्थक दखल से अब परिस्थितियां काफी हद तक बदल रही हैं। 2019 में अनुच्छेद-370 और 35ए के हटने के बाद से जमीनी बदलाव के साथ-साथ अब जम्मू-कश्मीर से संबंधित सही सूचनाएं भी निकलकर देश और दुनिया तक पहुंच रही हैं।
गौरतलब है कि कश्मीर अध्ययन केंद्र की ओर से आयोजित किए जा रहे संवैधानिक अधिमिलन सप्ताह का मंगलवार समापन हो गया। 26 अक्तूबर से लेकर 31 अक्तूबर तक आयोजित इस ऑनलाइन एवं ऑफलाइन कार्यशाला में जाने-माने विषय विशेषज्ञों ने जम्मू-कश्मीर विषय से संबंधित संवैधानिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आयामों पर महत्वपूर्ण विचार रखे। मंगलवार को ऑनलाइन आयोजित किए गए समापन सत्र में कश्मीर अध्ययन केंद्र की निदेशक प्रो. आभा चौहान, प्रो. मलकीत सिंह, डॉ. जयप्रकाश सिंह, डॉ. अजय
कुमार, डॉ. उदयभान सिंह, डॉ. चंद्रशेखर सहित विभिन्न विभागों के आचार्य, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।