हिमाचल प्रदेश के संस्कृत एवं संस्कृति संरक्षण संघ ने सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने का पूरा मन बना लिया है और इसका एलान बाकायदा धर्मशाला से किया है आज पत्रकारों से वार्तालाप करते हुये शास्त्री संरक्षण संघ के जिलाध्यक्ष आचार्य संजीव शर्मा ने बताया कि पूरा संरक्षण संघ बीते दो दशकों से इस प्रदेश की सरकार का बैचबाइज भर्ती के लिये मोहताज़ हुआ पड़ा है आज जब प्रदेश की मौजूदा सरकार एक फरमान लेकर आई है कि अब सीएंडवी काडर की भर्ती को टीजीटी की मार्फत किया जायेगा ये तो सरासर शास्त्री अध्याप्कों के साथ अन्याय है
उन्होंने कहा कि जो शास्त्री अध्यापक 16 संस्कारों की विस्तृत गहन अध्ययन करके शास्त्री अध्यापक बनता है उसके लिये प्रदेश में बीएड आदी का कोई न तो प्रावधान है न ही अध्ययन के लिये कोई संस्थान बावजूद इसके 11 अक्टूबर को शास्त्री पदों की भर्ती और पदोन्नति नियम का नया फरमान जारी किया गया है इसमें सीधे-सीधे टीजीटी के नियमों को थोंप दिया गया है और कहा जा रहा है कि अब शास्त्री भी टीजीटी शास्त्री होंगे सरकार के इस फैसले से हर शास्त्री आहत है उन्हें टीजीटी कहलाने में कोई आनंद नहीं है, बस शास्त्रियों के लिये जो नियम कानून हैं उन्हें उन्हीं के मुताबिक अमल में लाया जाये अगर संधोधन करना भी है तो उसमें कमेटी का गठन करके संस्कृत के शिक्षाविद्धों को भी शरीक किया जाये ताकि इस तरह के तर्कहीन और विरोधाभाष जैसी स्थितियां उत्पन्न न हों आचार्य संजीव ने बताया कि एक तरह सरकार प्रदेश में संस्कृत को द्वितिय भाषा का दर्जा देने की बात कहती है दूसरी तरह शास्त्रियों के साथ अन्याय करती है हालांकि मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है मगर फिर भी अगर सरकार ने उनके हित में फैसला नहीं लिया तो वो भविष्य में आत्मदाह जैसे कड़े कदम उठाने को मजबूर हो जाएंगे क्योंकि बीते दो दशकों से शास्त्री अध्यापकों के पास रोजगार-स्वरोजगार के नाम पर सिर्फ मनरेगा, दिहाड़ी-मजदूरी, मंदिरों में पूजा-पाठ, कर्मकांड और निजी स्कूलों में न के बराबर वेतनमान है इसके अलावा कुछ भी नहीं।