धर्मशाला : आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश कॉर्डिनेटर सुभाष नेहरिया की अध्यक्षता में राष्ट्रपति को जिलाधीश के माध्यम से दिया ज्ञापन। छत्तीसगढ़ में कुल आदिवासी कितने प्रतिशत हैं? 2023 में छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या लगभग 2.75 करोड़ है।
बात दें की इसमें से लगभग 92 लाख (33.6%) आदिवासी हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार पूरी दुनिया में मूलवासियों/आदिवासियों की कुल जनसंख्या लगभग 48 करोड़ है, जिसका लगभग 22 फीसदी आदिवासी समाज भारत देश में रहता है। छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के तुरंत बाद भाजपा की विष्णुदेव साय सरकार ने खदानों के विस्तार को मंजूरी दे दी है, जबकि इसके खिलाफ उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में मुक़दमा भी चल रहा है। खदानों के विस्तार को मंजूरी के साथ ही सरगुजा जिले में जैव विविधता से संपन्न हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा पूर्व और केते बसन (पीईकेबी) चरण-2 कोयला खदानों की विस्तारीकरण को लेकर पेड़ों की कटाई भी पुलिस सुरक्षा घेरे के बीच शुरू हो गई है। इसके खिलाफ आन्दोलन कर रहे आंदोलनकारियों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने 21 दिसंबर को उन लोगों को हिरासत में लिया जो हसदेव क्षेत्र में कोयला खनन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। वहीं विधानसभा में कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर उद्योगपतियों का पक्ष लेने का आरोप लगाया। उल्लेखनीय है कि 1252.447 हेक्टेयर में फैले छत्तीसगढ़ के परसा कोयला खदान के इलाके में 841.538 हेक्टेयर इलाका जंगल में आता है। परसा कोयला खदान राजस्थान के बिजली विभाग को आवंटित है। राजस्थान की सरकार ने अडानी ग्रुप से करार करते हुए खदान का काम उसके हवाले कर दिया है। राजस्थान का भी केते बासन का इलाका खनन के लिए आवंटित है। इसके खिलाफ उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में मामला भी चल रहा है। पूर्व से ही काटे जा रहे जंगलों को बचाने के लिए कई सालों से अनिश्चितकालीन हड़ताल चल रही है। इसके लिए स्थानीय लोग जमीन से लेकर अदालत तक लड़ाइयां लड़ रहे हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के लिए यह चिंता का विषय बन गया है।
हसदेव अरण्य क्षेत्र में पहले से ही कोयले की 23 खदानें मौजूद हैं। साल 2009 में केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इसे ‘नो-गो जोन’ की कैटगरी में डाल दिया था। इसके बावजूद कई माइनिंग प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है, क्योंकि नो-गो नीति कभी पूरी तरह लागू नहीं हो सकी। यहां रहने वाले आदिवासियों का कहना है कि कोल आवंटन का विस्तार अवैध है। गौरतलब है कि यह क्षेत्र पंचायत एक्सटेंशन ऑन शेड्यूल्ड एरिया (पेसा) कानून 1996 के अंतर्गत आता है। अतः बिना ग्राम सभा की मर्जी के आदिवासियों की जमीन पर खनन नहीं किया जा सकता। पेसा कानून के मुताबिक, खनन के लिए पंचायतों की मंजूरी ज़रूरी है। आदिवासियों का आरोप है कि इस प्रोजेक्ट के लिए जो मंजूरी दिखाई जा रही है वह फर्जी है। आदिवासियों का कहना है कि कम से कम 700 लोगों को उनके घरों से विस्थापित किया जाएगा और 840 हेक्टेयर घना जंगल नष्ट हो जाएगा।