सिधिविनायक टाइम्स: शिमला। हिमाचल प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस सरकार के भीतर बढ़ते मतभेद और असहमति एक बार फिर सुर्खियों में हैं। धर्मशाला में आयोजित कांग्रेस विधायक दल की बैठक में अपेक्षित संख्या में विधायक उपस्थित न होने से सरकार की एकजुटता पर सवाल और गहरे हो गए हैं। बैठक के लिए दिल्ली से विशेष पर्यवेक्षक भेजे गए थे, लेकिन बावजूद इसके 40 में से केवल 15 विधायक और 2 मंत्री ही बैठक में पहुंचे, जिससे संगठनात्मक अनुशासन और नेतृत्व क्षमता पर बहस तेज हो गई है। राज्य में हाल के दिनों में सत्ता पक्ष की कार्यप्रणाली को लेकर कई सवाल उठते रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि मुख्यमंत्री और मंत्रियों के बीच तालमेल की कमी साफ दिखाई दे रही है। कुछ वरिष्ठ नेताओं का आरोप है कि सरकार की गतिविधियों में शीर्ष पदों पर बैठे लोग पर्याप्त सक्रिय नहीं हैं, जिसका असर नीतिगत कार्यों और विधानसभा की कार्यवाही पर पड़ रहा है। विधानसभा सत्र के दौरान भी कई मौकों पर सत्ता पक्ष के विधायकों की गैर मौजूदगी से कोरम पूरा न होना चर्चा का बड़ा कारण बना।
यह भी पढ़े:-https://sidhivinayaktimes.com/employment-crisis-deepencongress-governmunderureskashyap/
एक मंत्री के लगातार सदन से अनुपस्थित रहने और विभागीय प्रश्नों के दौरान उपलब्ध न होने पर विधानसभा अध्यक्ष को हस्तक्षेप करना पड़ा, जिसने सत्तारूढ़ दल की लापरवाही को उजागर किया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की परिस्थितियाँ सरकार की स्थिरता और संगठन में विश्वास को कमजोर कर सकती हैं। बढ़ते असंतोष और गुटबाजी पर विपक्ष खुलकर निशाना साध रहा है तथा दावा कर रहा है कि राज्य की वर्तमान सरकार न केवल नेतृत्व संकट से जूझ रही है बल्कि प्रशासनिक स्तर पर भी कमजोर पड़ गई है। हालांकि, राज्य सरकार की ओर से अब तक इन आरोपों पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। विधायक दल की बैठक के बाद जारी घटनाक्रम के बीच यह साफ है कि कांग्रेस नेतृत्व को पार्टी में बढ़ती दरारों को पाटने और संगठन को मजबूत करने की चुनौती सामने खड़ी है। आने वाले दिनों में स्थिति किस दिशा में जाएगी, इस पर पूरे राज्य की राजनीतिक निगाहें टिकी हैं।





















