सिद्धिविनायक टाइम्स शिमला। डॉ. बी. आर. आम्बेडकर किसी एक जाति के नेता नहीं बल्कि समाज के कमजोर वर्गों के सच्चे संरक्षक थे, यह बात डॉ. बी. आर. आम्बेडकर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, हरियाणा के कुलपति प्रो. देविंदर सिंह ने कही। यह टिप्पणी उन्होंने हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के आम्बेडकर अध्ययन केंद्र द्वारा आयोजित ‘आम्बेडकर संवादमाला 2025-26’ के द्वितीय सत्र में ‘हिंदू कोड बिल: सामाजिक समरसता का अनछुआ आयाम’ विषय पर बोलते हुए की। प्रो. सिंह ने कहा कि महिला सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय के प्रति डॉ. आम्बेडकर की प्रतिबद्धता यह प्रमाणित करती है कि उनकी संवेदनाएँ जाति तक सीमित नहीं थीं। प्रो. सिंह ने यह भी कहा कि सामाजिक समरसता का सपना साकार करने में शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है, और विश्वविद्यालयों की भूमिका इसमें अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि सामाजिक सुधारों के प्रति उदार होना हिन्दू होने की सबसे बड़ी पहचान है, जिससे समाज विभिन्न उतार-चढ़ावों का सामना आसानी से कर पाता है। उन्होंने जातिगत भेदभाव के शोषण के ऐतिहासिक पहलुओं की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि विकसित भारत को अब सामाजिक समरसता के प्रति विशेष सजग रहने की आवश्यकता है।
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केन्द्रीय विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता अकादमिक, प्रो. प्रदीप कुमार ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि हिंदू कोड बिल सामाजिक समरसता का एक सशक्त उपकरण है और डॉ. आम्बेडकर के योगदान को नए सिरे से रेखांकित करने की जरूरत है। आम्बेडकर अध्ययन केंद्र के प्रभारी डॉ. किस्मत कुमार ने कहा कि हिंदू कोड बिल भारतीय समाज को विभिन्न विधिक संहिताओं के माध्यम से एक सूत्र में बांधने का प्रयास था, जिससे भौगोलिक और भाषाई अंतराल को पाटा जा सका। डॉ. कुमार ने यह भी बताया कि आम्बेडकर संवादमाला समसामयिक विमर्श को तथ्यपूर्ण बनाने और राष्ट्रबोध को सशक्त बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई एक अकादमिक पहल है। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय के विभिन्न विभागों के संकाय सदस्य, शोधार्थी, विद्यार्थी और समाज के गणमान्य लोग उपस्थित रहे।




















